पैसा
पैसा
दौड़ रही है दुनिया, देखो पैसों के पीछे
दिखती नहीं है मंज़िल, देखो ऑंखें है मींचे।।
रिश्ते- नातों की, क़ीमत है घटा रही
अंधी दौड़ में है शामिल, छूटा सब है पीछे।।
रूप दिखावे की,समृद्धि ही दिखती है
देख नहीं पाती है अब, गौरव अतीत है पीछे।।
क्षणभंगुर-नश्वर है, ये जीव -जगत सारा
जीवन ही हार रही, बस पैसों के पीछे।।
कहना ‘उदार ‘बस इतना, सहृदयता मन में लाएँ
सीमित, सार्थक हो, सरल हो,
ना भागें धन के पीछे।।