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S Ram Verma

Romance

3  

S Ram Verma

Romance

पाक रूहें !

पाक रूहें !

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ऑंखें सुराही बन 

घूंट-घूंट चांदनी को 

पीती रहीं !


इश्क़ की पाक रूहें

सारे अनकहे राज  

जीती रहीं !


रात रूठी रूठी सी  

अकेले में अकेली  

बैठी रही !


और मिलन के 

ख्वाब पलने में 

पलते रहें !


नींदें उघड़े तन 

अपनी पैहरण खुद

ही सीती रही !


हसरतों के थान को 

दीमक लगी वक़्त की 

मज़बूरियों की !


बेचैनियों के वर्क 

में उम्र कुछ ऐसे ही 

बीतती रही !


ऑंखें सुराही बन 

घूंट-घूंट चांदनी को 

पीती रहीं !


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