" ओढ़नी "
" ओढ़नी "
देखी थी मैंने कल
करीने से तह करके रखी
असंख्य तारों से जड़ी वह
ओढ़नी,
दिल के आलमारी में
जिससे जुड़ी हुई हैं
यादें तुम्हारी -और
जिसमें समाई हुई है
खुश्बू हमारे प्यार की
उस ओढ़नी में,
जो रखी है दिल के
अलमारी में
उस रात आया
तूफान जीवन में जो,
ले गया संगअपने
खुशियाँ और
दे गया अंधेरा असीम
ग़म और आँसू
रूप में वहीं
रंग गई वो
खूबसूरत ओढ़नी
स्याह रंग में
उसमें जड़े हुये -तारे
चमकते हैं
आज भी -और
टूटते हैं --फिर
कहीं दूर हो जाते हैं -गुम
सदा के लिए
पर ओढ़नी चमकती रहती है सदा
सजी हुई तारों से और
देती है हौसला
जीवन में अंधेरों से लड़ने की
असंख्य तारों से से सजी वह ओढ़नी।