ओ कौन थी ?
ओ कौन थी ?
आज मिली बाजार में, घूंघट ओढ़े थी खड़ी
जब रुका मैं तो वो मुड़ी, कदकाठी थी अच्छी भली
कपड़े भी तो थे भारी, पहनी थी शायद रेशमी साड़ी
ऊँची ऐड़ी की संडल थी, पर्स भी उसकी ब्रँडेड थी
थी खुशबू में महक उसकी, गजरा मोगरे का पहने थी
पास उसने आके थमाया एक बंद पैकेट बड़ा
जबतक समझता, और खोल पाता
वो गाड़ी पे निकल पड़ी, अंदर थे लड्डू मूँग के
जो पसंद मुझे थे बचपन से, सौंधी उनकी खुशबू आई
था थोड़ा जायफल इलायची
कौन था जिसे पता थी मेरी पसंद बचपन की
याद कर सिर चकराया न मिला कोई ढूँढकर भी
जब घर में गया, वहीं खुशबू थी मोगरे की
कुछ और तलाश ही रहा था की, पूछा बीवी ने कौन थी वो ??
संदेह फिर और बढ़ा
क्यों पूछे ये सवाल आज जो कभी पूछती न थी
लड्डू हाथ के रख फिर मैंने रूख किया कमरे का?
क्या कहूँ क्या हाल हुआ वहीं साड़ी देख मेरा
बाहर से फिर बीवी झाँकी, बच्चे ताक रहे खिड़की से
फिका पड़ा चेहरा देख मेरा ओ जोर से चीखे
एप्रिल फूल बनाया! ऐप्रिल फूल बनाया !
