भागते - भागते थक गई हूँ ,
अब थोड़ा ठहरना चाहती हूँ ,
इन बहते हुए अश्रुओं को ,
यहीं कहीं समेटना चाहती हूँ |
गर किसी ने देख लिए ,
तो कितनी बदनामी होगी ?
देखो ये हार गई है .....
हर जुबां पर नई कहानी होगी |
जिनसे थोड़ी मोहब्बत की थी ,
आज उन्होने भी ऐसा ठुकराया ,
विश्वासघातिनी नाम देकर ....
कितना बड़ा धर्म निभाया |
हम यहाँ टूट रहे थे अंदर ,
उन्हे कुछ पता नहीं था ,
अजीब सा जलजला उठा था ,
अंदर एक दिल जला था |
हजारों से दुश्मनाई कर ली ,
किसी का घर बचाने में ,
फिर भी चर्चे सर ~ ए ~ आम हो गए ,
महफ़िल ~ ए ~ मस्तानो में |
नफरत सी हो गई है अब तो ,
पुरुषों के ऐसे दंभ पर ,
जो स्त्री दमन कर के भी ,
रहते अपने पूरे घमंड पर ||