नमन शहीदों को
नमन शहीदों को
डूबा है देश गम की गर्त में आज
कैसे लिखूँ क्या लिखूँ?
मन तो करता है आज मैं
आतंकवादीयों के मौत का फ़रमान लिखूँ।
कलम उगल रही है आँसू
कागज़ का सीना फट गया,
लिखने बैठी जब दास्तान फ़ौजी की
मेरी ऊँगलियों का पोरा मचल गया,
प्रेम दिवस को न व्यर्थ जाने दिया
दे दी अपनी जान
अपनी जानेमन माँ की ख़ातिर
गले लगाकर मौत को
शहादत की चादर तान ली।
बस अब बहुत हो गया शांति से वार्तालाप
एलान ए जंग का विगुल बजा दो,
करो शैतानों को मात
है वीर तू हिम्मतवान,
तेरी शहीदी न जाएगी बेकार
है पूरा देश तेरे परिवार के साथ।
चुन चुन कर लो बदला
अब न बख़्शो मौत के शैतानों को,
घुसकर उनके घर में नौच ड़ालो चाँडालों को।
शर्म करो मौत के सौदागरों तुम
क्या मुँह अल्लाह को दिखाओगे
पूछेगा न कोई हिसाब तेरा
सीधा नर्क की आग में जाओगे॥
