नकाबपोश दुनिया
नकाबपोश दुनिया
आपके संग एक अनुभव सांझा करने आई हूँ,
अंधेरे में डूबी दुनिया का सच बतलाने आई हूँ।
कहाँ से शुरु करुँ कुछ समझ नहीं आता,
वास्तविकता का यह रुप मुझको नहीं भाता।
अगर सच इतना भयानक होता है,
तो झूठ का पर्दा रखना ही बेहतर है।
हर कोई स्वयं को ऊँचा समझता है,
लगता उसे बाकि सब उससे कमतर हैं।
जानी मैंने लाॅकडाउन में एक परिवार की सच्चाई,
जिसने थी अबतक सबसे अपनी असलियत छिपाई।
पैसों से अमीर वो खुद को जताते हैं,
जाने क्यों बिजली बिल जमा नहीं कराते हैं।
अगर कोई मजबूरी होती तो शायद समझ आता,
मगर आदत थी उनकी,यह सब था उनको भाता।
कुछ सालों बाद वह स्थान बदलते रहते थे,
दोस्ती कर लोगों से, उनको ठगते रहते थे।
हिम्मत कर जब किसी ने उनका नकाब उतारा,
हमें भी तब दिखाई दिया उनका भयावह चेहरा।
ईश्वर की कृपा से यहाँ पर सब कुशल मंगल है,
समझ आया किंतु यह जीवन बहुत बड़ा दंगल।
