नियति

नियति

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मेरे घर के

सामने के पार्क में

था मौलश्री का ठूंठ

पेड़ एक !


काट दिया था

किसी ने अंधेरी रात में

चुपके से

और झौंक दिया था

होलिका दहन की

अग्नि में !


हृदय विदारक

चीत्कार कर उठी थी

शाखाएं उसकी कैसे

पूछती हूँ मैं

उन हत्यारों से

क्या निर्बलों की

यही है एक नियति

यथार्थ में !


कोई तो बोलो

चुप क्यों हो

तुम सब !

क्या हर बार

देखना चाहोगे

मौलश्री की नियति


और सुनना चाहोगे

चीत्कार उसका !

उत्तर चाहिये मुझे

क्या फिर चाहते हो

पेड़ ठूंठ एक

मौलश्री का !


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