नियत और नियति !
नियत और नियति !
कभी सिहरता
कभी महकता
कभी तपता
कभी भींगता
कभी स्वतः यूँ ही
पिघलता और मैं
यूँ भी आनंदित था
पर विचलित ना था
जानता था कि ये
तुम्हारी नीयत न थी
नियति के चक्र में
तुम भी बंधी थी
पर दुख तो ये था
कि तुम ये भूल गयी थी
कि तुम्हारे चक्र में मैं
भी तो बंधा था !