नियामतें जो मिली शुक्र सुब्ह शाम करें
नियामतें जो मिली शुक्र सुब्ह शाम करें
नियामतें जो मिली शुक्र सुब्ह शाम करें।
कि ख़्वाहिशों को कभी भी न बे-लगाम करें।
वो मुस्कुरा के हैं पूछे कि हाल कैसा है,
सजा के झूठ लबों पर दुआ सलाम करें।
सजा रखे थे जो अरमां लुटा दिए तुम पर,
बचे हुए हैं ये सपने कहो तमाम करें।
ख़ता नहीं थी हमारी पता नहीं तुझको,
तुझे यकीं जो दिलाये वो कैसा काम करें।
नहीं दिखी तू कहीं मैंने हर जगह देखा,
तेरी झलक के लिए हम किसे पयाम करें।
नहीं हुई जो मोहब्बत हमें यहाँ हासिल,
तो जिंदगी की कहानी का इख़्तिताम करें।
बिकी हुई है अदालत जो ठीक दो कीमत,
चलो कहीं से गवाहों का इंतिज़ाम करें।