STORYMIRROR

Yogesh Suhagwati Goyal

Drama

5.0  

Yogesh Suhagwati Goyal

Drama

निराशा बोल रही है

निराशा बोल रही है

1 min
16.6K


माफ़ करना, ये मैं नहीं, मेरी निराशा बोल रही है

नासमझ, मेरी सहनशीलता को, फिर तोल रही है


सुकून गायब है, ज़िंदगी उलझी-उलझी सी लग रही है

कोशिशों के बाद भी, कोशिश, बेअसर लग रही है

मंजिल तक पहुँचने की कोई राह नज़र नहीं आती

जुनून दिल में बरकरार है, निराशा घर कर रही है


सीधी सच्ची मौलिक बात, इन्हें समझ नहीं आती

मेरी कोई कोशिश, किसी को भी, नज़र नहीं आती

मेरी कोशिश में ये लोग अपनी पसंद क्यों ढूंढ़ते हैं

उनकी पसंद से मेरी कोशिश मेल क्यों नहीं खाती


मुझे आखिर कब तक, खुद को साबित करना होगा

ये भारी पड़ता इन्तजार, ना जाने कब ख़त्म होगा

इन्सान हूँ मैं भी अपने काम की पहचान चाहता हूँ

खुद से इश्क करता हूँ मैं भी एक मुकाम चाहता हूँ


आज भीड़ में खड़ा हूँ तुमको नज़र नहीं आ रहा हूँ

कौन जाने कल तुम्हें भीड़ में खडा होना पड़ जाए

आशा और जुनून के आगे निराशा नहीं रुका करती

कहे “योगी” कौन जाने ये मौसम कब बदल जाए ।।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Drama