STORYMIRROR

Dr Priyank Prakhar

Comedy

4  

Dr Priyank Prakhar

Comedy

निंन्दा-रस

निंन्दा-रस

1 min
464

आओ तुम्हें मैं, अपना ये ज्ञान समझाता हूं,

हर ऑफिस हर घर में, प्रायः पाया जाता हूं।


साहित्य रस हूं मैं जो, बिन भेदभाव आता हूं,

हर दुखी चेहरे पर मैं, सुख का भाव लाता हूं।


सब का दुख हरदम, खुशियों में पिघलाता हूं,

इसी बहाने उनको, एक दूजे से मिलवाता हूं।


कुछ ऐसे भी हैं, जिनको ना मैं रास आता हूं,

दूर चले जाते हैं, जब मैं उनके पास आता हूं।


मेरा है आनंद अनोखा, अब उनको बतलाता हूं,

मेरी शरण में आए तो, उनके दिल बहलाता हूं।


जैसे योग से शरीर का, हर भार हट जाता है,

वैसे ही निंदा से मन का, कुहार घट जाता है।


हो फुहार मेरी तो, मनमयूर मतवाला खो जाए,

सुन पुकार मेरी, हर मन हिम्मतवाला हो जाए।


निंदा तो है रस माधुरी, सबकी प्यास बुझाए,

ये तो वो माया, जो ना पकड़ी ना छोड़ी जाए।


दुख है मुझे उचित सम्मान, ना किसी ने जताया,

साहित्य का अंग अभिन्न, ना कभी मुझे बताया।


मैं एक भाग अभिन्न, जीवन साहित्य आधार हूं,

गौरतलब हर नर नारी का, मैं ही पहला प्यार हूं।



Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Comedy