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Rashmi Prabha

Fantasy

4  

Rashmi Prabha

Fantasy

नई उड़ान

नई उड़ान

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कोई माने न माने..

परी थी मैं,

उड़ान ऐसी कि हर

तरफ आग लग गई,

मेरे पंख जल गए,

लेकिन परी थी न,

सो मन की उड़ान

ज़िंदा रही।


सपनों में पंख भी

सही-सलामत रहे,

भीड़ में भी मेरी अदृश्य

उड़ान बनी रही।

भागती ट्रेन से बाहर,

मैं मेड़ों पर थिरकती,

खेत-खलिहानों में

गुनगुनाती,

गाड़ी से बाहर

भागती सड़कों पर ,

नृत्यांगना बन झूमती।


पहली बार जब

हवाई यात्रा की,

तो बादलों से कहा,

आ गई न मिलने,

चलो, इक्कट,

दुक्कट खेलें,

फिर सूरज के घर

मुझे अपनी पालकी पर

बिठा कर ले चलना,


चाँद की माँ के

गले लगना है,

उनको चरखा

चलाते देखना है,

ज़रा मैं भी तो जानूँ,

वो चाँद को क्या क्या

सिखलाती हैं !

चाह में बड़ी

ईमानदारी रही,

सपनों की बुनावट में

ज़बरदस्त गर्माहट रही,


तभी,

मुझे मेरे दोनों पंख

बारी बारी मिल गए,

उन पंखों ने मुझे

नई उड़ान दी,

आँखों पर सहेजकर

रखे सपनों में रंग भरे,

मैं चाभी वाली गुड़िया की

तरह थिरक उठी,

उम्र को भूलकर

उड़ान भरने लगी,

मेरा परिवेश

प्राकृतिक हो उठा

और मैं परी ।



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