।।नेता नगरी।।
।।नेता नगरी।।
ये बेवजह की बात करके,
यूँ न तू अब फुसला मुझे,
ये तेरी लगाई आग ही है,
जो आशियाना मेरा जला।।
तेरी रहबरी में होश खोकर,
बस भूलता खुद को चला,
दीन खोकर ईमान खोकर,
अब पास मेरे है क्या भला।।
तेरे हैं सब खोखले वादे ,
और बस हैं थोथे भरोसे ,
मेरी उम्मीद की थाली में,
तूने बस हैं झूठ ही परोसे ।।
कि कितनी भूख है तुमको,
ये आसमां भी क्या खाओगे,
लोभ की सेकने को रोटियां,
और घर कितने जलाओगे ।।
धर्मनिरपेक्षता के नाम पर,
बस हो करते धर्म का धंधा,
खता किस की लिखूँ मैं आज,
समाज सारा ही तो अंधा ।।
गए सब राज राजवाड़े,
न कोई जागीर बाकी है,
बने तुम सम्राट इस युग के,
ये डेमोक्रेसी की झांकी है।।
जो हो ईमान का पक्का,
निडर, निर्भीक, प्रणेता,
तरसती माँ भारती की आंखे,
बस पाने को ऐसा नेता।।
एक नेता अब तो ऐसा हो,
जो कथनी हो वो करनी हो,
डिगे न अपने किये प्रण से,
चाहे सत्ता ताक धरनी हो।।
मिलें फिर लाख कंटक राह में,
तुम अब हार मत मानो,
बदल सकता है ये निज़ाम,
तुम बस ताक़त को पहचानो।।
बदल सकता है ये निज़ाम,
तुम बस ताक़त को पहचानो।।
