नेता बनाम डाकू
नेता बनाम डाकू


कुछ वर्ष पूर्व देश में डाकुओं का बोलबाला था
उनके भय ने हर दिल में घर बना डाला था
समय के साथ डाकुओं का समापन हुआ
और उसके साथ ही नेताओं का आगमन हुआ।
काम दोनों का लूटना था ये समानता एक थी
फिर भी दोनों में असमानताएँ अनेकों थी
जब दोनों की महानता जानने का विचार आया
तब हमारे मित्र ने किसी एक से मिलने का सुझाया।
डाकुओं से मिलने का साहस नहीं जुटा पाया
तो नेता जी से मिलने का मन बनाया
नेता जी की तलाश में हम घर से निकल पड़े
पास ही के दफ्तर से एक खददरधारी नजर पड़े।
समस्या से अपनी उन्हें हमने अवगत करा दिया
किसी एक की महानता पर प्रकाश डालने का अनुरोध किया
नेता जी बोले यह भी कोई प्रश्न है ऋमान
नेता ही हर नजर हर एंगल से है महान।
नेता और डाकुओं में देश लूटने की
प्रतियोगिता करवा लीजिए
हम ही जीतेगे कहीं भी लिखवा लीजिए
डाकू बड़े मर्द होते हैं बता के आते हैं
सभी घरों में सतर्क हो जाते हैं।
हम कहीं भी बिना नोटिस पहुंच जाते हैं
कुरसी पे बैठे बैठे देश के खजाने लूट लाते हैं
डाकू हैं जंगल में छुपते छुपाते हैं
हम सरे आम मोटरों में मौज उड़ाते हैं।
लोग घरों से भाग जंगलों में जा डाकू बन जाते हैं
हम जनता के लिए जनता द्वारा चुनकर आते हैं
डाकू व नेता की महानता का जब जब प्रश्न आएगा
डाकू एक नेता से कभी नहीं जीत पाएगा।