नदी और जीवन
नदी और जीवन
नदी ही जीवन है
जीवन ही नदी है
दोनों अप्रत्याशित से
एक ही जैसे
ऊंचे पहाड़ों से निकल
नीचे बहती नदी
दिखलाती गिरना स्वभाव
उठना नहीं आसान
कल कल बहती
दुनिया की प्यास बुझाती
खेतों को सींचती
तब मिलती वह नदी सागर में
जीवन भी नदी सम
नीचे ही गिरता मन
ऊपर कब उठता
आसान नहीं साधारण नर के लिये
परोपकार में खप जाना
दूजों के लिये जी जाना
कुछ सूत्र सिखाती नदी
अंत जीवन का
होगा उसी अनंत में।
