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Goldi Mishra

Drama

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Goldi Mishra

Drama

नौटंकी

नौटंकी

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नौटंकी का किरदार थी मैं,

हर रस का श्रृंगार कर सजी थी मैं,

इस मंच पर हर रस की छाप है,

मेरे भीतर जीवित हर याद है,


वो पल जब मैं हर किरदार को जीती थी,

नौटंकी खत्म होने के बाद भी मैं किरदार को संजो कर रखती थी,

श्रृंगार रस में डूब बन बावरी मैं,

रमी कभी संजोग कभी वियोग में मैं,


भय रस में कांप उठी,

कभी वीर रस में वीरांगना बनी,

कभी करुणा रस में खुद को अर्पण करती,

वात्सल्य में विभोर मैं दुलार को रचती,


अपनी कहानी मैं हास्य रस के पर्दे के पीछे छुपाती,

भयानक या डर ही था जिसमें मैं देर तक कांपती,

अद्भुत रस में खोज निखारे विस्मय आश्चर्य के नए राग,

वीभत्स हुई जब आंखें ये तो घृणा में खुद को दिया बिछा,


मंच का पर्दा गिरा ही था कि किरदार शांत रस में मग्न हुआ,

मैं वो किरदार थी जिसने नौटंकी को जिया था,



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