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Vijay Kumar parashar "साखी"

Drama Inspirational

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Vijay Kumar parashar "साखी"

Drama Inspirational

"बेटियां बहुत समझदार"

"बेटियां बहुत समझदार"

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बेटियां होती है, इस जग में बहुत समझदार

छोटा भाई ऐसा उठाती है, जैसे हो फूल हार

छोटा भाई कभी नहीं लगता है, उसको भार

बाहर से वो दिखती कोमल, भीतर है, तलवार


बेटियां रब का दिया हुआ है, अनुपम उपहार

जिस घर मे होता कन्या, नारी, स्त्री का सत्कार

मनुष्य क्या, देवगण भी वहीं पर करते है, वास

उस घर मे होती है, सुख, समृद्धि, लक्ष्मी अपार


बेटियां एक नही दो घरों की है, ख़ुशी मनुहार

पीहर, ससुराल सर्वत्र बेटी बिन अधूरा, संसार

बेटियां होती है, इस जग में बहुत समझदार

बेटियां डूबती नाव की बचानेवाली है, पतवार


बेटियों पर भरोसा तो कर देखो, एक बार

आपके नसीब का कैसे न बदलेगा, श्रृंगार?

बेटियों का पड़ जाए, गर पत्थरों पर वार

खिल जाते है, उन पत्थरों पर फूल हजार


जिस घर बेटियां है, वो घर होते गुलजार

फिर भी पुरुष प्रधान ही है, हमारा संसार

आज डायन, दहेज आदि के फैले है, बाजार

कहीं तो जन्म से पहले कोख में देते है, मार


क्या बेटी होना होता है, दुनिया मे गुनहगार?

आज भी पुरुष के आगे वो है, बहुत लाचार

अपनी सोच बदलो तभी बदलेगा, यह संसार

बेटियां न होगी कहां से लाओगे, मां का प्यार?


बेटियों को उड़ने तो दो, पंख खोलकर एकबार

यह तितलियां आह्लादित करेगी, हमें हजार बार

इनकी खिलखिलाहट ही तो है, असल स्वर्ग द्वार

24 जनवरी को राष्ट्रीय बालिका दिवस, त्योहार


जिस दिन नर समझ जायेगा, महत्व एक नार

उस दिन जन्नत बन जायेगा, उसका परिवार

उस पुरुष का हो जाता है, हर स्वप्न साकार

जिसकी नारी होती है, मन से उसके साथ


उसके प्राण यमराज न छीन सकता, एकबार

जिसके पास सावित्री जैसी पत्नी का, प्यार

अपनी अर्धागिनी की जो कद्र करे, हर बार

उसके शूल भी बदल जाते, बनकर फूल हार


बेटियां होती है, इस जग में बहुत समझदार

जो भी व्यक्ति इस सत्य को लेता है, स्वीकार

वो जीवन मे पाता कामयाबियों का पारावार

स्त्री और प्रकृति दोनों वास्तविक रचनाकार


स्त्री का जिसने किया अपमान का अपराध

रावण, कौरव, कंस समान मिटा उसका संसार

आओ स्त्री का यथोचित करे, हम सब सत्कार

ओर ले अपनी यह बदसूरत जिंदगी को, संवार



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