नैया बिन माझी बिन पतवार हुई।
नैया बिन माझी बिन पतवार हुई।
सारा घर रोशन दीपक से पर तली अंधेरेदार रही।
छत पर चढ़कर नींव देखने की कोशिश बेकार रही।
आना जाना पाना खोना माना जीवन के किस्से हैं।
हार जीत के यहां खेल में हर सांस मेरी दुश्वार रही।
भूल भूत को वर्तमान में जीना माना सच्चा जीना है।
पर निपट उदासी सूने पन की वर्तमान पर मार रही ।
तेरा आना खुशी भरा था तेरा जाना दुख का कारण।
एक पहिए के बिन ये गाड़ी अब चलना दुश्वार हुई ।
यह सच है जीवन में कोई साथ अंत तक कब देता है
बिन तेरे जीवन की नैया बिन माझी बिन पतवार हुई।