हाल-ए-इश्क़
हाल-ए-इश्क़
ज़िन्दगी को यूँ
उदास ना रख
है इश्क़ तो सामना भी कर
धोखा फ़रेब मक्कारी पर
किसका बस चला है
रिवायत है इश्क़ की
इन्हें सरे बाज़ार ना कर
बहुत दिनों से मैं यह सोचता हूँ
ग़र इश्क ही था
तो फिर जफ़ा कैसी
भुलाना ही था तो यादें कैसी
रुसवा ही करना था
तो मिलन कैसा
बिछड़ना ही था
तो साथ रहना कैसा
होना था रक़ीब का
तो हमसे वास्ता कैसा
आँखों में खटकना ही था
तो दिल में रखना कैसा
बंदिशें है तो आज़ादी कैसी
नफ़रतें हैं तो मोहब्बत कैसी
ज़िन्दगी को यूँ
उदास ना रख
है इश्क़ तो सामना भी कर
बहुत दिनों से मैं यह सोचता हूंँ
ग़र इश्क़ ही था तो।