अंतिम भेट गुलाब की
अंतिम भेट गुलाब की
लाख फटकारा भगाया
लाख नजरों को चुराया।
लाख उससे बेरुखी की
बाज तो भी वह ना आया।
मेरे हजारों सितम सहकर
जिल्लतों का घूंट पीकर।
उदासी की ओढ़ चादर
हर दिन गली में मेरी आया।
मैं तंग उससे आ चुकी थी।
उसको बहुत बहका चुकी थी।
तो भी वह पागल था उसने
प्यार मुझ पर ही लुटाया।
चाल अंतिम चली उसने।
रोज सुबह आ के दर पर
सुर्ख फूल गुलाब का हर दिन।
चौखट पर मेरी छोड़ आया।
यह अदा उसकी गजब थी
जो मेरे मन को लुभा गई।
एक दिन खुद आगे बढ़ कर
उसको गले मैंने लगाया।