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V. Aaradhyaa

Tragedy

4  

V. Aaradhyaa

Tragedy

कुछ अब अच्छा लगता नहीं

कुछ अब अच्छा लगता नहीं

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चल रही है जिंदगी किनारा अब लगता नहींं, 

पत्थर का है जो यार अब वह पिघलता नहींं।

रूखसत है ख्वाब कुछ भी अच्छा लगता नहीं,

सच में यार रहता हूँ घर बाहर निकलता नहीं।


थी पाने की आरजू अब दिल कुछ कहता नहीं, 

धड़का इतना कि यार अब दिल धड़कता नहीं।

खो दिया तुम्हें अब मैं कुछ खोने से डरता नहींं, 

उगा है पूरब से वो पश्चिम से कोई कहता नहीं।


रोए हम इतना कि अब आँसू निकलता नहीं, 

कोई भी मंज़र हो दिल अब मचलता नहीं।

अजब सी दिल की हालत जो बहकता नहीं, 

चलूँ गर धूप में भी तो अब पैर जलता नहीं।


सख्त हो गए पत्थर से अब दिल पिघलता नहींं, 

दर्द की इंतिहा देखकर अब दिल डरता नहीं।

किनारा मिले हम को दिल आस करता नहीं, 

मुझे पक्का पता है, वो मुझे प्यार करता नहीं।


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