बदलते वक़्त..!
बदलते वक़्त..!
वक्त बदलते देखा है...
हवाओं का रुख बदलते देखा है...
चेहरे और खुशबू बदलते देखा है...
जिंदगी की हर मोड़ पर रिश्तों को बदलते देखा है...
फिर भी हर सांचे में ढल कर खुद को बदला...!
हर बढ़ते कदम के साथ कुछ अलगाव महसूस किया है...
हर झपकती पलकों के साथ नज़रानो का बिखराव महसूस किया है...
हर नई पकड़ के साथ किसी दामन का छूटना महसूस किया है...
हर गुज़रती सांस के साथ जिंदगी का गुज़रना महसूस किया है...
फिर भी बढ़ते वक्त के साथ खुद को आगे बढ़ाया...!
नए ज़माने में दोस्तों के नए चेहरों को जिया है...
नई उमंगों की उड़ान से पहले पंखों का कटना जिया है...
नई धुनों और ताल के बीच अपनी आवाज और थाप का खोना जिया है...
हर वफा, हर चाहत, हर विश्वास, हर एेतबार के बदले सिर्फ धोखा और फरेब जिया है...
यह था मेरी ही जिंदगी का एक सिरा जो मैंने जिया है क्योंकि खुद को सिखाया था जो मैंने बिना मांगे सब कुछ दिया है...!
आंखों में नमी चेहरे पर उदासी की आदत थी...
सूखे होठों की बस आपस में बात थी...
दिल अकेला पर धड़कनों को हमेशा आस थी...
लफ्ज़ों को ही सही पर जिंदगी ढूंढ़ती कोई साथ थी...
आंखों की पसराई काजल और बेरंग मन फिर भी मेरी जिंदगी में बाकी कोई प्यास थी...!
एकाएक उठ खड़ी थी मैं...
किसी की आहट के पीछे खुद को ढूंढने चल पड़ी थी मैं...
धोखे का वह मंजर नया ना था...
पर इस बार मुझ में कुछ बचा ना था...
दुनिया को छोड़ खुद ही में बस गई थी मैं...
जहां खाई थी ठोकर वहीं बस ठहर गई थी मैं...!
चली कोई नई हवा थी...
या छेड़ा किसी ने नया साज़ था...
जिंदगी के बंद पड़े दरवाजे पर यह दस्तक
कुछ अलग, कुछ नया, कुछ खास था...!
दुनिया का दस्तूर है या इस बार रब को मंजूर है...
टूटा मेरी खामोशी और तन्हाइयों का गुरूर है...
ओस की बूंद या बागों का भंवरा है...
नई सुबह की नई किरण या फिर कोई सुहाना सपना है...
चंदा से की गई सिफारिश या तारों की नई चाल है...
अब तो दिल ही ना जाने दिल का क्या हाल है...
तेरी धड़कनों ने छेड़ी कैसी नई साज़ है...
कि थम सी गई मेरी धड़कनों की थाप है...
अब तो बदला बदला सा लगे यह जहां है...
हर मंजर में बस लगे तेरे रूप में खुदा ही आस-पास है...!
तेरी दोस्ती का हाथ थाम मिला मेरी जीवन को एक नया सहारा...
इस दुनिया में नाव के मुझ मांझी को मिला एक अनमोल साथ पर अब भी दूर था किनारा...!
दोस्ती के सुरों के बीच प्यार की एक कैसी कशिश को तूने उभारा...
नैनों को मूंद बस चल पड़ी तेरे संग कि ये दिल हुआ बहारा...
अब ना होश, ना खोज खबर, ना दुनिया का कोई आलम था
मोरे दिल में दस्तक देने आयो मोरा बालम था...
हर मोड़, हर मौसम में एक दूजे का हाथ थाम चलते थे हम...
हर उतार-चढ़ाव में "यह वक्त गुजर जाएगा" सोच हंस पड़ते थे हम...!
अचानक फिर से एक आंधी उठी...
मेरा फिर सब कुछ उजाड़ वो चली...
कुछ ना बचा, ना मैं कुछ कर सकी...
बस अपनी बर्बादी के निशानों पर टकटकी लगाए रुआंसी मैं खड़ी...!
जब जाना ही था आए ही तुम क्यों..?
जब साथ छोड़ना ही था थामा तुमने क्यों..?
जब रुलाना ही था तो फिर हंसना सिखाया ही तुमने क्यों..?
जब मेरा दिल तोड़ना ही था तो तुम समाएं उसमे क्यों...?
अब खत्म हर आस, हर प्यास...
सूखे होठों ने भी बंद कर दी हर बात...
नम आंखों पर पसरा काजल भी मिट चुका...
कुछ ना बचा, कुछ ना रुका बस सदा के लिए मेरा हर साथ छूटा...!
आखरी गुजारिश! अब दूर जाने के लिए कुछ ना आए पास...
बाकी ही जब कुछ ना आने को रास...
मेरे साइयां अब तोहरी ही रखकर आस...
छोड़ के इस जीवन की डोर अब सदा के लिए थम रही मेरी सांस...।
