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Varsha Somani

Tragedy

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Varsha Somani

Tragedy

लागा चुनरी में दाग

लागा चुनरी में दाग

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कभी सांझ ढले चले आओ तुम...

मेरे रैन बसेरा बन मुझ में समाओ तुम...


मेरी खामोशी को अपनी साज़ दे जाओ तुम...

मेरी तन्हाइयों को अपना ऐतबार दे जाओ तुम...


रात की विदाई के साथ इस अलगाव के दर्द को रफ़ा कर जाओ तुम...

चादर की सलवटों संग प्यार का एक नया मर्ज़ दे जाओ तुम...


कल फिर किसी मोड़ पर तेरा इंतज़ार होगा...

किसी और की पलकों को तेरा दीदार होगा...


बिखरेगी किसी की जुल्फ़ तेरे छांव के लिए...

कहीं फिर छलकेगा जाम हुस्न का,

बदनाम-सराय के आशिक सिर्फ़ तेरे लिए...


जिस्म की बोली लगी हर चौराहे पर...

हम तो खुद को लुटा बैठे तुझ इशकज़ादे पर...


किसी की चाहत में बेवफाई का दर्द तुम्हे भी था...

हमारी मोहब्बत पर बेईमानी के लांछन का डर हमे भी था...


तुम्हारे दर्द में हुस्न क्या दिल की दौलत भी हम लुटा बैठे...

तुम अपना दिल बहला जिस्म का मोल चुका सवेरे चल दिए...

इश्क के उस ज़ख्म को फिर नासूर बना हम बैठे...


इज्ज़तदारों की शाम परवानी हुई...

बदनाम तो गलियां हमारी हुई...


बदनाम गलियों में भी तेरे दर्द को संवारा हमने था...

पर कोई ना समझा ना तुमने किया साझा...

चुनर हमारी थी... दाग तुम्हारा था....।


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