विधवा नारी
विधवा नारी
नहीं समाज मान्यता देता, क्यों विधवा नारी को,
दोषारोपण करते कहते दुष्टा उस बेचारी को।
उसका दोष बता दो क्या है ? उसके पति के मरने में।
किसको होती खुशी भला, अपने घर के जलने में।
फिर भी हम क्यों नहीं समझते, उसकी ये लाचारी को।
दोषारोपण करते कहते दुष्टा उस बेचारी को।
जब एक सधवा नारी भी, विधवा का मान घटाएगी।
क्या होगी समाज की हालत, कैसे वह रह पाएगी।
ताने कसते,अशुभ बोलते, दुष्ट उसी दुखियारी को।
दोषारोपण करते कहते दुष्टा उस बेचारी को।
यहीं पूजते हैं नारी को, उसका मान बढ़ाते हैं।
भाग्यलक्ष्मी, देवी कहकर, उसकी शान बढ़ाते हैं।
क्यों पापनी,डंकिनी कहते, कुलटा उस बेचारी को।
दोषारोपण करते कहते, दुष्टा उस बेचारी को।
छोड़ पुरानी मान्यताएं, विधवा के सँग ब्याह रचाएं।
रूठी किस्मत उस नारी की, बनाके सधवा चमकाएं।
मिल जाएगी वही मान्यता, फिर से ही उस नारी को।
दोषारोपण करते कहते, दुष्टा उस बेचारी को।