नैसर्गिक अधिकार
नैसर्गिक अधिकार
अधिकार ! अधिकार ! अधिकार !
किस अधिकार की बात करते हो तुम ?
नैसर्गिक अधिकार! क्या केवल तुम्हारा ही
प्रकृति पर अधिकार है ? हमारा कोई हक नहीं ?
आखिर हम भी तो इसी पिंड के प्राणी हैं !
हम भी तो इसी माँ के संतान हैं !
तो फिर हमारे साथ ये दोगलेपन भरा व्यवहार क्यों ?
क्यों हमारी हक को मार रहे हो ? हड़प रहे हो ?
आखिर क्यों? इसलिए न कि
तुम्हारे पास विवेक है ! तुम बुध्दिजीवी हो ?
पर तुम अपनी विवेक से ही कभी विवेक करो कि
क्या दूसरों के नैसर्गिक अधिकारों को
अपनी छल- छलावे से हड़पना !
उनपर अपनी नापाक इरादा रखकर
उनका नाश करना यही है बुद्धिजीविता और विवेकशील ?