नारी तेरे रूप अनेक
नारी तेरे रूप अनेक
ये नारी तेरे रूप अनेक,
एक रूप है ममता वाला, जो सबपर प्यार लुटाता।
दूजा रूप में जब आ जाती सभी की चिन्ता तू हर लेती।
तीजे रूप में साथी बनकर हर कदम तू साथ निभाती।
चौथे रूप में जाने कितने दर्दों का तू बोझ उठाती।
हंसी, खुशी, त्यौहार, परम्परा, परिवार सब है तेरे दम पर।
बात आये जो बच्चों पर तो शेरनी बन गुर्राती।
धरती माँ की रक्षा ये लक्ष्मीबाई बनकर करती।
अपनी खुद्दारी की खातिर सीता बनकर,
उसी धरती में समा जाती।
कोई भी रूप हो नारी तेरा हर रूप है तेरा निराला
माँ, बहन, बेटी, पत्नी के बिना ये संसार अधूरा रह जाता।
