Bindiya rani Thakur

Classics

4.6  

Bindiya rani Thakur

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नारी की कहानी

नारी की कहानी

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हर बार क्यों मुझे ही झुकना पड़ता है, 

फिर चाहे मेरी गलती हो या ना हो,

मुझे अग्नि परीक्षा से गुजरना पड़ता है।


पग-पग पर समाज ने मेरे लिए 

बंदिशें हजार लगा रखीं हैं 

मेरे हर एक सांस तक में 

उन्होंने जैसे पाबंदियां लगा रखीं हैं। 


कसूर सिर्फ इतना ही है मेरा 

कि मैं एक नारी हूँ 

गैर तो गैर ही ठहरे 

मैं तो बस अपनों से ही हारी हूँ।


सदियों से बदलाव के उम्मीद से हूँ 

आज ना कल तो इन मुश्किलों का अंत होगा

आने वाले समय में एक नवीन सूर्योदय होगा।


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