उमा हुई अपर्णा
उमा हुई अपर्णा
इन्द्र ने भेजा कामदेव को
भंग करने शिव समाधि को,
वसन्त की सहायता से
फूलों के बाण से
पिनाकपाणि महादेव का धैर्य छुड़ाने
पहुँच गया रति साथ कुसुमाकर।
जब गौरी तपस्वी महादेव की
पूजा हेतु पहुँची,माला भेंट की
गंगा में उत्पन्न कमल के बीजों की।
महादेव ने माला लेने हाथ बढ़ाया
उधर कामदेव ने पुष्प-धनुष पर
सम्मोहन बाण चढ़ाया।
सहसा विक्षुब्ध हो शिव ने
पार्वती की ओर देखा,
गौरी को रोमांच हो आया
सर्वांग खिले कदम्ब पुष्प सा हुआ ,
हृदय के आलोड़न से व्याकुल हो
त्र्यम्बक ने तीसरा नेत्र खोला।
बेचारा कामदेव नेत्र की ज्वलंत ज्वाला से
झुलसने लगा और घबराकर
कुसुमायुध फेंक दिया,उसके पॉंच टुकड़े हुए,
उससे पॉंच सुगन्धित फूलों वाले पौधे हुए
मल्लिका,जूही,पाटल, बकुल और चंपक ,
प्राणों का उत्सर्ग करते भी सुगन्ध सम्पदा दे गया।
पिनाकधारी ने पार्वती के देखते देखते
कामदेव को भस्म कर दिया,और
तपस्वी महादेव तप हेतु अन्तर्धान हुए ।
पार्वती का मनोरथ चूर चूर हुआ।
संकल्प किया कठोर तप का
अभीष्ट सिद्धि के लिए।
शिखर पर जाकर हिमालय के तप किया
वल्कल वस्त्र धारण किया,
सुन्दर मुख जटाओं से शोभित हुआ,
हाथों में रुद्राक्ष की माला ली,
किरणों से तप तप कर
मुखकान्ति कमल समान अरुणाभ हो गई।
बिना मॉंगे प्राप्त होने वाला वर्षा जल
और चन्द्रमा की रसभरी किरणें
यही उसका उपवास बाद भोजन था,
पार्वती ने स्वयं गिरे पेड़ों के पत्तों को
खाना भी छोड़ दिया, तब मधुभाषिणी
पार्वती का नाम अपर्णा पड़ गया।
