अंदाजे बयां (८)
अंदाजे बयां (८)
विधना ने कैसा लिखा, पढ़ न पाये बात
वेदना सही माँ ने, पड़ोसन खाये दाल-भात।
नजर आया इस उम्र में, जीवन है कारागार
समझा जाना तो कुछ नहीं, रटता रहा बारंबार।
लटका देखा शहद को, मन बार-बार ललचाय
मेहनत न देखी मधुवों की, बस पाने को जाय।
झंझट में तुम न पड़ो, यहाँ बैठो यार
जाने वाले जायेंगे, सुनकर चीख पुकार।
छेड़ो राग विभोर का, छू लो मन के हर तार
अइयारों को मत छेड़ना, अब नहीं रहे अइयार।
दानवीर होते नहीं, मंत्री मित्र और वज़ीर
भूखों नंगों के द्वार पर, भिक्षा माँगे फ़कीर।