चिरप्रतीक्षित
चिरप्रतीक्षित
सदियों से प्रतीक्षारत रहा
कि एक दिन
ज़रूर लौटकर आओगे तुम
और बताओगे
कि तुम भागे नहीं थे
समस्याओं से डर कर
आधी रात
गाढ़ी नींद में
नहीं सोता छोड़ गए थे
प्यारी यशोधरा
और नन्हें राहुल को
तुम आओगे
और मिटाओगे
अपने ऊपर लगा कलंक
यह भी बताओगे कि
भागकर हासिल नहीं होते
चट्टान-से प्रश्नों के जवाब
जो समस्त सृष्टि की पीड़ा से
हो व्यथित
वह कैसे किसी को
दे सकता है वेदना
मैं अब भी रुका हूँ
अंगुलिमाल की तरह
कि तुम आकर समझाओगे
कि तुम जवाब नहीं
उन प्रश्नों की तलाश में गए थे
जिनसे हम आज भी
मुँह चुराते हैं
नज़रे बचाते हैं
और जवाबों की रेत में
धँसा लेते हैं अपने मुँह
पर मुझे एक डर भी लगता है
हाँ !
डर भी लगता है
कि जब तुम लौटोगे
और अपने प्रश्नों को रखोगे
हमारे सामने
और माँगोगे जवाब हमसे
तो कहीं चिढ़कर
हम फिर से तुम्हें
सूली पर न चढ़ा दें
क्योंकि
हमने यह तय कर रखा है
कि तुम गए हो
हमारे कष्टों के हल ढूँढ़ने
कष्ट
जो हमारे स्वार्थ से जनमें हैं
स्वार्थ
जो हमारी आत्मा में भरे हैं
आत्मा
जो आज भी भटक रही है
तुम्हारी प्रतीक्षा में
मुझे विश्वास है
तुम एक दिन ज़रूर लौटोगे
और वह तुम्हारा अंतिम दिन होगा।।

