स्त्री रिश्ते की तुरपाई करती है
स्त्री रिश्ते की तुरपाई करती है
हर स्त्री अपने आप को आंकती रहती है,
अपने मन के अंदर जाती रहती है:
और अपने अस्तित्व को स्थापित करने की
लगातार कोशिश करती रहती है !
हर रिश्ता बहुत ही प्यार से बुनती है !
उनकी उघड़ी हुई सिलाई की तुरपाई करती है !
हर रिश्ता चाहे उनकी तरफ से हो या ना हो,
वह रिश्ते निभाने का भरपूर दम रखती है !
कभी रिश्ता बिगड़ता है तो....
मीठी मीठी बोली से तो मुनहार की
कभी सूई धागे से पैबंद लगाती है !
कभी नए नए रिश्ते सिलती रहती है !
अपने बच्चों की ख्वाहिश पूरी करने के
आगे जान लगा देती है !
सबकी इच्छाओं और हर किसी की होकर
खुशी के आगे झुक जाती है !
और जब खुद के लिए वक्त मिलता है तो...
मौका मिलते ही उन्मुक्त होकर उड़ जाती है !
कभी अपनी कलम से अक्षरों को
टटोल टटोल कर, बड़े एहतियात से
मन की स्याही से शब्दो को उकेर लेती है !
और सबसे ताज्जुब की बात यह है कि.…
एक स्त्री सम्मान के अलावा और कुछ नहीं चाहती है !
समुचित मान मिले तो स्त्री पहाड़ से सख्त और
नदिया सी चंचल और फूलों सी कोमल बन जाती है।