उन्हें देखते हैं
उन्हें देखते हैं
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उड़ाते थे अक्सर सबकी जो खिल्ली
परेशां परेशां उन्हें देखते हैं।
सुहाता था इक पल भी चेहरा न मेरा
न जाने क्यों अब वो मुझे देखते हैं
उड़ाते थे अक्सर.....
महफ़िल में हों या, अकेले में हों वो
कभी ना किसी से, वो कम आंकते थे
न जाने क्या उनको, अजी हो गया है
उन्हें तन्हा तन्हा , अब हम देखते हैं
उड़ाते थे अक्सर.....
शहर के सहर पे हुकूमत था जिनका
जमीं क्या सितारों पे कब्जा था उनका
हर इक की नजर पे, पहरा था जिनका
वो नजरें उठाकर, अब कम देखते हैं
उड़ाते थे अक्सर सबकी जो .. .
चलो के उन्हें अब, नया नाम देदें
ये मय है पुराना, नया जाम देदें
जो उनके जहर को, अमृत में घोले
चलो इक नया राह, हम देखते हैं
उड़ाते थे अक्सर सबकी जो खिल्ली
परेशां परेशां उन्हें देखते हैं. .