नापाक मरहम
नापाक मरहम
ख्वाबों को बुनकर लाये थे मंजर,
पल भर में उड़कर ख़ाक हुए..!
खामोशी के जिनके कायल थे,
पुतले वही अब बेबाक़ हुए..!
नाक रखी थी जिनकी हमने,
पत्ते वही अब ढाक हुए ..!
जो कभी बने थे शौक हमारे,
अब पल दो पल की खुराक हुए..!
जिन हमदर्दों पर फ़क्र हमें था,
उनमें ना कोई अशफ़ाक़ हुए..!
ज़ख्म भरे थे जिनसे हमने,
मरहम अब वो नापाक़ हुए..!