न जाने क्यों
न जाने क्यों
आंसुओं से भरा चेहरा, कीचड़ से सना शरीर,
फटे हुए थे कपड़े, बदन से रिस रहा खून।
हुआ था जुल्म उसपर फिर भी उसे ही कोस रहे थे लोग,
कोई कहता "ज्यादा बाहर घूमती थी "तो कोई बोलता
"पहनती थी ये छोटे कपड़े" घरवालों ने तो
परिवार पर कलंक बता दिया
कई सारे कपड़ों की परतों के नीचे
उसका हर जख्म दबा दिया।
टी वी पर भी उसी लड़की का नाम पता बताया था,
न जाने क्यों लड़के के ऊपर कोई आरोप क्यों न लगाया था?
पता था सबको कौन था वो फिर भी
खुला घूम रहा था वो सड़कों पर,
बिना गलती के कैद थी लड़की
घर की चौखट लांघना दूभर था।
