STORYMIRROR

Pratham Raj Wadhwa

Tragedy Inspirational

4  

Pratham Raj Wadhwa

Tragedy Inspirational

मूल

मूल

1 min
299

कृष्ट हूँ 

आकृष्ट नहीं 

कृषित तो हूँ 

पर भूमि का अंग नहीं 


कृत्रिम लगे 

पर भेद यही 

वक्ष पर सब फुदक रहे 

और मर्म का लेश नहीं 


लता-मंजरी वैशाख मैं 

कार्तिक आषाढ़ नहीं 

मठ मस्जिद से वास्ता 

दरख़्त में है क्या प्राण भी 

 

अर्थ चाहिए 

सार्थ नहीं 

अरथी ले जाइएगा 

सारथी के क़ाबिल नहीं 


सृजनता तो है 

सृजनहार में भी 

घाट मौत के उतार सके 

ये कला सब में तो नहीं।  


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Tragedy