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Pratham Raj Wadhwa

Abstract

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Pratham Raj Wadhwa

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सफ़्हा और स्याही

सफ़्हा और स्याही

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ग़म इश्क़ का है,

या ख़्याल वालिद का

आग ज़मीर की है,

या पैग़ामी नफ़रत की ?

साहिब-ए-ज़र, बंद है ख़्याल क्यूँ

पिंजरे में मुफ़लिस के

चलिए मुस्तफ़ा ख़्वाबों की

एक नज़्म करतें हैं !!


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