सफ़्हा और स्याही
सफ़्हा और स्याही
ग़म इश्क़ का है,
या ख़्याल वालिद का
आग ज़मीर की है,
या पैग़ामी नफ़रत की ?
साहिब-ए-ज़र, बंद है ख़्याल क्यूँ
पिंजरे में मुफ़लिस के
चलिए मुस्तफ़ा ख़्वाबों की
एक नज़्म करतें हैं !!
