केसरी
केसरी
जब जब काली रुदन होगा,
नीरव पड़ी अधित्यकाओं पर
तब तब स्पंदन भी होगा,
धमनी में निष्ठुर मन की ।
रक्त स्तरित मरुधर को थामें
अम्बे अजय गीत सुनाती हैं
मुझ भोले स्पंदित मन को
संदीप्त किए चली जाती है ।
विशाल जटाएँ लेकर जब
अरुधर तिमिर मिटाता है
तुझ सिंदूरी में अपना नारंगी
स्मविलीन किए जाता है ।
माँ तेरा बेटा रंग कूटकर
तुझे तिलक लगाएगा
मेरा भोला मन ,आज
तुझे केसरिया ओढ़ाना चाहेगा ।।
