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Pratham Raj Wadhwa

Inspirational

4.5  

Pratham Raj Wadhwa

Inspirational

वेश्यावृत्ति

वेश्यावृत्ति

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शायद यहीं मोक्ष मिला ,

मंदिर में अब क्या जाना ?

भीतर में हैं भाव नहीं,

खोखले कनस्तर-सा देह त्यागा !!


हसरतों के इस मंजर में ,

फ़ितरतों का क्या मोल ? 

यूँ तो मुड़ जातें हैं ,

नामाकूल भी मेरी गली की ओर !!


बाज़ारूँ हूँ, 

बाज़ार तो नहीं;

माना बिकती हूँ,

पर बेचती तो नहीं!!


दलालों के इस जमानें में,

हलालों का क्या मोल ?

यूँ तो बजा जातें है ,

मृतक के परिजन भी ढोल !!


जिस्म ही सही,

शख़्सियत तो नहीं ;

वरना शख़्सियत तो क्या,

कोई शख़्स भी नहीं !!


मालूम होता हैं, बीमारी नहीं ,

ख़ुदा का है झोल;

वरना कहाँ था इन नाचीजों का 

लिपटने में भी कोई तोल ।


चूक सकता है फ़क़ीर, 

ख़ुदा की दुआ में, पर 

दुआ की उसे ज़रूरत क्या ?

जिसने क़ुर्बां किया हो

जिस्म इस दुनिया में ।।


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