STORYMIRROR

Pratham Raj Wadhwa

Abstract Action Inspirational

4  

Pratham Raj Wadhwa

Abstract Action Inspirational

दीपांजलि

दीपांजलि

1 min
290

क्यों बन बैठा तू मूढ़ है 

धूल नहीं , तू शूल है 

सर्वस्व को पहचान तू 

बन बाण-तूणीर-राम तू , बन बाण-तूणीर-राम तू।


दिव्यग्नि जगी जो दीप है  

यों भाँप उठी प्रवीण है

वो भस्म पड़ी संकीर्ण है 

पीत-प्रीत सी लौ ज्वलन जो, मन-मृदंग-मनमीत है ।


द्वेषाग्नि है भ्रम-दंभ  

लिपट रही जो सर्प सी 

सन्नाटे से सन रही जो  

प्रलोभ-धूली आडम्बर की , वो काम-रति-रेत सी।


चीर कर तेरी छाती को 

भेद कर तेरी नाभि को 

यूँ नाश करें, विनाश करें 

छाँट कर तम-तेरे उस रावण को, स्मरण-कर उस पावन को।


जैवतथ्य अब जान तू 

यूँ चेत को ना थाम तू 

अवचेत को पहचान तू 

बन बाण-तूणीर-राम तू , बन बाण-तूणीर-राम तू।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract