चिंतन
चिंतन


चाहत की लालसा लिए, दुनिया से बेख़बर
हर शाम , मैं डूब जाता हूँ तुझी में
रूप तेरा निराकार, पूरा ब्रह्मांड तुझी में
कठपुतलियों के परवानों की दुनिया, क्या समझ पाएगी मुझे ?
असीम है प्रकरण, तुझसे क्या छिपा है मगर
हर रिश्ते नाते से बेहतर साथ दिया है तुम्हीं ने
अलगाव की तमन्ना रखने वाला ये ज़माना,
क्या तुझमें विलीन होने देगा मुझे ?
चेतन नहीं तो अवचेतन में
कहीं तो विद्यमान है रे तू !
अगर तू नहीं ना, तो शायद
चूल्हे में झुलसती ये औरत मेरी माँ भी नहीं !
तुझसे बिछड़ एकांत चाहता है ये ज़माना
अरे ओ बावली दुनिया,
विक्षिप्त के लिए एकांत का कोई मतलब भी है रे ?