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Pratham Raj Wadhwa

Abstract Action Inspirational

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Pratham Raj Wadhwa

Abstract Action Inspirational

विचाराग्नि

विचाराग्नि

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समझ सका ना कोई राज़ आज तक जो बतलाए जाता हूँ

शक्ति का सामक्षय कर भी, जो सहिष्णुता अपनाता है

मायिने वास्तव के वही, सर्वोपरि, सर्वोधामी बन जाता हैं


आकस्मित जो भाव उठे, तेजस्व की यों भाँप उठे

विचार जब बरस पड़े , रूढ़ि की जब ईंट बजे

बहकी परिपाटी के भीतर, जब परिपेक्षता के अधर सिले


तब विवश मर्यादा भी बोल उठे, मुर्दे का खून खौल उठे

क्रांति के उस भँवर में, निष्ठुर तिनका भी भौचाल बने

ऐसी कल्पना इस नायक की, उत्प्रेक्षा कुछ बेहतर कल की।


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