आत्मसात
आत्मसात
ऐ मनुज !!
तुझे तेरी आस का आभास है ,
अरे तेरी आस्था विलास है ।
विलाप नहीं आलाप कर ,
आलाप में आसार है, आलाप में आसार है ।।
ऐ कृतिकार !!
कृति की रीति तू छोड़ ,
तुझे क्या विनाश का अनुमान हैं ?
भँवर के भाँवर में लिप्त ,
क्या तुझे ब्रह्म का अनुमान हैं ?
शायद !!
दुष्ट नहीं दुर्दृष्ट तू ,
संज्ञा का तुझे मान हैं।
ओं बावलें कभी सोचलें
प्रज्ञा ही विमान है, तेरे हौसलों की उड़ान है ।।
तू !!
दक्षता अन्वेश कर,
आक्रोश तू अनिवेश कर ।
नवस्पंदित आंदोलन के दोलन से ,
परिपेक्षता सुकृत तू कर, परिपेक्षता सदृश तू कर।।