मुस्कान
मुस्कान
मुस्कुराता हुआ तुम्हारा ये हसीन चेहरा
न जाने कैसे पहेलियां सुलझाता था,
सारे जवाब मेरे पास होकर भी
मैं खुशीसे पहेलियां लेकर घूमता था
मुझपे तरस खा के ही सही
पर कमसे कम तुम साथ तो देती,
फिर मैं डूब जाता तुम्हारी मुस्कान में
अगले कई जवाबों के लिये सवाल ढूंढने
इरादा कुछ भी नहीं था मेरा
ना ही कुछ आगे का सोचा था,
लोगों ने फिर मुझे क्यों खुदगर्ज़ कहा
तुम्हारी मुस्कान ही तो मेरा ख़्वाब था
पर अब मैंने भी ठान ली है
थोड़ी खुदगर्जी मैं भी दिखाऊँगा,
रोज आईने के सामने खड़ा रहकर
मेरी ही मुस्कान से पहेलियां सुलझाऊँगा