मुर्दा हूँ मैं
मुर्दा हूँ मैं
इश्क में तेरे जो बनाया था घर वो घर तोड़ दिया,
कभी देखूं न तेरी सूरत तो तेरा शहर छोड़ दिया !
जाम में जो देखी तेरी सूरत तो जाम तोड़ दिया,
फिर ना पी कभी मयखाने में जाना छोड़ दिया !
ख़्वाब में जो देखा तुझको तो ख़्वाब तोड़ दिया,
ख्वाबों में तुम न आओ तो रातों में सोना छोड़ दिया !
जो मिला मुझे तुम सा उस से रिश्ता तोड़ दिया,
तुम सा न मिले कोई तो मैंने लोगों से मिलना छोड़
दिया !
मुर्दा हूँ मैं जो दिया तूने मर्ज तो मेरा दम तोड़ दिया,
लावारिस समझ मेरी लाश को लोगों ने शमशान छोड़
दिया !!