मुक्तक
मुक्तक
जो तीन बार डूबे तो पाए दमक का शोर,
जो साधे सध ना पाए जारे नटनी कृश डोर,
जो जान से निकट क्यों नहीं बन पाए बेमोल
जो ना अर्पण का मोल डाले तर्पण पर जोर।
चालू करते हैं माता-पिता पर नियंत्रण,
चालू करते हैं बाधित प्रौढ़ता के अंकुरण,
चालू करते हैं रीत पुरानी तेरी-मेरी पारी
चालू करते हैं अनुकरण बन छाया चित्रण।