मुखौटा
मुखौटा
इतने सालों के अनुभव से
एक ही बात सामने आई है
जीवन में अगर खुश रहना है
कभी रूप न अपना बदलना है ।
प्रभु की अद्भुत कृति हैं हम
हर एक की अपनी पहचान है
क्या जरूरत है किसी मुखौटे की
अपनी माँ की सुंदर संतान हैं हम।
तन मन जब हमारा है शुद्ध
क्यों बात हम मुखौटों की करें
जैसे हैं हम वैसे ही रहें सब
विश्वास की डोर सदा पनपे तब।
देखा है मैंने लोगों को मुखौटा बदलते
अपने स्वार्थ के लिए गिरते हुए
जिंदगी में गिरगिट से रंग बदलते हुए
अपनों की पीठ छुरा घोंपते हुए ।
बेहतर है साधारण रूप से जीना
मुखौटे बगैर पसंद बेखौफ घूमना
जैसे भी हैं खुद को बहुत पसंद हैं
हम से हैं दुनिया यही हमारा चलन है।