बलात्कार
बलात्कार
दरिंदों का समाज है
मानवता शर्मसार है
जहाँ पूजते देवियों को
वहाँ बेटियाँ बेहाल है
खिलखिलाती किलकारियाँ
चीख में तब्दील है।
जो नोंचते शरीर को
उनकी आत्मा मलीन है
काट कर के अंग अंग उसके
जानवरों को डाल दो।
या उसे झोंक दो अंगारों में,
जो बलात्कारी आजाद है।
मेरी आत्मा की गुहार है।
मेरी रूह की पुकार है
उसे झोंक दो अंगारों में
जो बलात्कारी आजाद है।