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Tarnija Mohan Rathore

Action Crime Inspirational

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Tarnija Mohan Rathore

Action Crime Inspirational

महिला एक टूटती बिखरती संवरती कृति

महिला एक टूटती बिखरती संवरती कृति

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नाजुक सी कली हूं,

नाजो से पली हूं,

एक बेटी एक मां और एक सहेली हूं,

कर ली ज़माने ने कोशिश समझने की,


पर नहीं पता उन्हें की एक अनसुलझी पहेली हूं,

कुंकूं भरे कदमों से इस दुनिया में कदम रखे थे,

बहुत ही प्यारी होगी यह दुनिया

न जाने कितने भ्रम पाल रखे थे,

ज्यादा देर ना लगी इन्हें चकनाचूर होने में,


बिखर गए अनगिनत सपने हजारों टुकड़ों में,

रिश्तों की भी मर्यादा नहीं रही समाज में,

बहुत फर्क आ गया कल और आज में,

नकाब पहने अपने ही लूट रहे थे अस्मत,

और कोस रही थी एक बेटी होने की मै किस्मत,


हर महिला दिवस पर पूजी जाती है हर एक महिला,

नवरात्रों में भी पूजी जाएगी हर एक बेटी जैसे गौरी मंगला,

कोई बताए मुझे कि क्यों उस देवी के आंखों से आंसू बहते हैं,

लोक लाज के डर से उसी के सपनों के

महल क्यों ढहते हैं, बंद करो यह ढकोसले


हिम्मत है तो बढ़ाओ किसी महिला के हौसले,

अब उसकी आंख से ना एक आंसू बहे,

और ना जमाना अब उसे कोई शाप कहे,

सिखाओ अपनी बेटी को आत्मरक्षा के गुर,

आपकी आधी चिंताएं यूं ही हो जाएगी फुर्र,


एक बेटी को भी उचित सम्मान दो,

एक बहू को बेटी ना सही पर बहू का मान दो,

एक मां एक पत्नी को अपने होने का अभिमान दो,

एक हाथ से लेकर दूसरे हाथ से ईमान दो।


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