आया पर्यूषण पर्व
आया पर्यूषण पर्व
अभी जैन समाज का पर्यूषण पर्व चल रहा है जिसमें सभी लोग बहुत धर्म ध्यान देव दर्शन महापुरुषों की साधु भगवानों
की वाणी का श्रवण करते हैं कल्पसूत्र वाचन सुनते हैं और भी बहुत कुछ करते हैं सबसे मन वचन और काया से क्षमा
मांगते हैं। उसी पर मेरी यह कविता आधारित है
आया पर्युषण पर्व आया पर्यूषण पर्व आया रे।
तपस्या का मौसम।
आत्म कल्याण का मौसम।
क्षमापना मिच्छामि दुक्कड़म का मौसम लेकर पर्व पर्युषण आया रे।
खुशी उल्लास सब लाया रे।
धर्म तपस्या में सब रंग गये।
बढ़-चढ़कर सब करे तपस्या।
कोई उपवास, कोई मास खमण, कोई अठाई ,
कोई तीन उपवास कोई पांच उपवास हर कोई एक दूसरे को देख करता जाता उपवास।
देव दर्शन धर्म संबंधी गंगा बही है ।
हर तरफ धर्म ही धर्म नजर आ रहा है।
मिच्छामी दुक्कड़म क्षमापना की क्षमा मांगने की बहार चली है।
मगर कहती है विमला क्या यह सब आत्म कल्याण के लिए हो रहा है ?
आठ दिन में आप अपना आत्म कल्याण कर लेंगे।
नौवें दिन वापस वही के वही सबसे क्षमापना कर लेंगे ।
मगर क्षमापना की जगह बैर सबके दिल में वही का वही।
क्यों ना हम कुछ ऐसा करें हमेशा ही आत्म कल्याण के लिए कुछ काम करें।
एक क्षमापना दिवस के लिए नहीं रोज क्षमापना दिवस जैसा ही कुछ काम करें।
जिससे क्षमा मांगनी हैं दिल से मांगे ।
और जिसको क्षमा करना है दिल से करें।
अपनी तपस्या के सामने ना करने वाले को हेय ना समझे।
समता भरा व्यवहार
सम्मानजनक वाणी सबके साथ रखें।